( तर्ज - छंद )
बडी कठिन थी स्वराज मंजिल ,
चढ़ बैठे भारतवासी ।
गये फिरंगी छोडके सत्ता ,
अब हालत आगे कैसी ॥ टेक ॥
प्रजातंत्र यह देश हमारा ,
पक्षतंत्र धुमधाम करे ।
उसीके मारे मचा शोर यह ,
सरगर्मी क्या काम करे ॥
किसका कहना मानके चलना ,
आपसमें बदनाम करे ।
देहातों में जाय न कोई ,
बातों से हैरान करे ।।
ऐसे कहते कई साल यह ,
बीत गये तंगो सोसी ।
आगे तो आराम मिले ,
हम रखते अभिलाषा ऐसी ॥
गये ० ॥१ ॥
बडी मुसीबत थी भारत पर ,
' पाक ' ने दिल हैरान किया ।
अभी न शांति मिली ,
लगा दम झंझटका ही काम किया ||
निसर्ग ने रंग फैला करके ,
हमपर रोडा डाल दिया ।
कहीं तो फसले बहा दिया
कहि पानी बिन दुष्काल किया ||
अनाज के बटवारे में भी ,
भई गलतियाँ हैं खासी ।
किसान के दिल चमक गये ,
कहे स्वराज है कि है फाँसी ॥ २ ॥ देशभक्त को घेर लिया है
माया मोह प्रलोभन ने ।
क्या करते गरिबों की सेवा ,
सब घर भर लीये उसने ॥
मुखे थे जब नही थी सत्ता ,
अब तो धनकी ढेर लगी ।
मानवता के तत्व भूलकर ,
स्वारथ की भावना जगी ।
देशके खातिर सूली चढे थे ,
उनको रोटी नहि बासी ।
नकली खादीधारी ने ती ,
लूट लिई दुनिया खासी ॥
अब तो आये चुनाव के दिन ,
देखो क्या रंग होता है ।
भोले भारत का अब देखे ,
किससे लगता नाता है ॥ ३ ॥
जातियता का डंका सारे ,
शहर में शोर मचाता है ।
कहे हमारा बुद्धीहीन पर ,
नहीं छोड़ेंने सत्ता है |
धरम के आडे छूपछुपकर ,
कोई लगाता तीर यहाँ ।
पैसे देकर गुंड लगाकर ,
पिलवाते है नीर यहाँ ॥
अशांत है बिन राहके भारत ,
किसकी हो जनता दासी ।
जिधर उधर है शाम अंधेरा ,
पार लगे नैया कैसी ॥ ४ ॥
अर्ज हमारी पक्षों से ,
ईमानदार को खडा करो ।
कहीं गलती होने नहीं पावे ,
समझ बूझकर बढा करो ॥
घरकी मुरगी नहीं है भारत ,
दूर दृष्टि की है जरुरत |
कई करोडों संभालना है ,
सबकी बढाना है इज्जत ॥
न्याय का झंडा फहराना है ,
नहीं चलेगी जात यहाँ ।
समदर्शी सत्य के पुजारी ,
है त्यागी की बात यहाँ ॥
हो ब्राम्हण , क्षत्रिय , हरिजन या
सीख , जैन , आदिवासी ।
पर होना है नेक धीर और
मानवता का परकाशी ॥ ५ ॥
राग द्वेष के नीवपर अपनी ,
संस्था कौन टिकाता है ।
नहीं करें नेकी से सेवा ,
नहीं पार लग जाता है |
ईश्वर सबका साक्षी रूपसे ,
निर्णय आप लगाता |
जो होना है वोही बनेगा
जिसका कर्म ऊँच आता है ॥
खून खराबी झगडा लडकर ,
कोई न नाम कमाता है ।
चार दीनकी सरगर्मी कर ,
आखर धुल समाता है |
तुकडयादास कहे अब तोभी ,
करो न भारत की हाँसी ।
पूज्य गांधी के शब्द संभालो ,
सुखी रहो भारतवासी ॥६ ॥
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